एक दीवाने की दीवानियत | सच्चा दीवानापन
बरसों पहले एक शहर में एक व्यक्ति रहता था। वह लोगोंकी भलाई चाहता था और उस केलिए लोगोंको समझाता था। वो इसकेलिए दीवानगी की सीमातक कोशिश करता। उसे लोग दीवाना भी कहने लगे थे। उसकी कहानी बड़ी रोचक है। आज हम आपको इसी एक दीवाने की दीवानियत क्या और कैसी थी वह बताएंगे।
वो व्यक्ति न बहुत अमीर था, न बहुत ताक़तवर। पर उसके दिल में सच्चाई का एक ऐसा चिराग़ जलता था जिस की रौशनी से वो दूसरों को भी रौशन करना चाहता था। वो लोगों से कहता,
“सच्चाई से जियो, किसी का हक़ मत खाओ, किसी पर ज़ुल्म मत करो।”
वो अपने समाज की बुराइयों के खिलाफ़ आवाज़ उठाता। लोग शराब पीते, झूठ बोलते, कमज़ोरों को दबाते, लेकिन वह उन्हें समझाता कि असली इंसानियत दूसरों के साथ इंसाफ़ करने में है।
वो कभी झूठ नहीं बोलता था। हर किसी की मदद करता था, चाहे वो अमीर हो या गरीब। उसके चेहरे पर हमेशा शांति रहती थी।
पर लोगों को उसकी बातें अच्छी नहीं लगतीं। उन्हें लगता था कि वो उनकी परंपराओं के खिलाफ़ बोलता है।
कुछ ने कहा, “यह आदमी तो पागल है!”
कुछ बोले, “यह हमारे देवताओं का अपमान करता है!”
कई लोग उस पर पत्थर फेंकते, उसे गालियाँ देते, फिर भी वह सहन करता और कहता,
“उन्हें नहीं पता, वे क्या कर रहे हैं।”
लोगोने उसे शहर छोड़नेपर मजबूर किया, उसने अपने शहर को छोड़ दिया, लेकिन उसने कभी उनसे नफ़रत नहीं की। बल्कि एक दिन उसने अपने ही दुश्मनों के लिए दुआ की,
“हे मालिक, इन्हें माफ़ कर, क्योंकि ये अनजान हैं।”
कौन था यह दीवाना?
दोस्तों वह व्यक्ति कोई साधारण इंसान नहीं था। वह वही शख़्स था, जिसे दुनिया पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के नाम से जानती है।
लोग जिसे “दीवाना” कहते थे, असल में वो सच्चाई, रहमत और इंसाफ़ का दीवाने थे। वो किसी सत्ता या धन के लिए नहीं, बल्कि इंसानियत को उठाने के लिए आये थे। उन्होंने कहा,
“सबसे अच्छा इंसान वह है, जो दूसरों के लिए भलाई चाहता है।”
(सहीह बुख़ारी 13)
और कहा,
“तुममें से कोई सच्चा मोमिन नहीं हो सकता जब तक कि वह अपने भाई के लिए वही न चाहे जो अपने लिए चाहता है।”
(सहीह बुख़ारी 12)
उनका यह दीवानापन सिर्फ़ एक धर्म नहीं था, बल्कि एक संदेश था, इंसाफ़, दया और मोहब्बत का।
मक्का की गलियोंमे गूंजती आवाज़
मक्का की गलियों में उनकी आवाज गूंजती थी,
“ला इलाहा इल्लल्लाह — अल्लाह (ईश्वर) के सिवा कोई उपास्य नहीं!”
यह आवाज एक बहुत ही शांत, सच्चे और भरोसेमंद व्यक्ति की थी। पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की।
लेकिन मक्का के कुछ लोगों को यह बात अच्छी नहीं लगी। उन्हें लगा कि यह आवाज उनकी परंपरा, उनके अहंकार और उनके मूर्तियों पर हमला कर रही है। इसलिए उन्होंने अफवाहें फैलानी शुरू कीं।
कोई कहता, “यह जादूगर है।”
कोई कहता, “यह कवि है।”
और कई लोग कहते,
“यह तो मजनून (दीवाना) है!”
मजनून का मतलब क्या है?
अरबी में “मजनून” का मतलब होता है “जिसकी अकल चली गई हो” या “जो पागलपन की बातें करता हो।” लेकिन सोचिए,
जो व्यक्ति हमेशा सच बोलता है,
जो अनाथों का सहारा बनता है,
जो गरीबों को खिलाता है,
जो दुश्मनों को भी माफ कर देता है,
क्या वो सचमुच “पागल” हो सकता है?
कुरआन में क्या कहा गया
अल्लाह तआला (ईश्वर) ने इस झूठे आरोप का जवाब खुद दिया।
“(हे मुहम्मद !) तेरे रब की कृपा से तूम किसी भी तरह का पागल नहीं हो।”
(सूरह अल-कलम 68:2)
फिर अल्लाह (ईश्वर) ने उनकी तारीफ में कहा,
“निश्चय ही तुम उच्चतम चरित्र के स्वामी हो।”
(सूरह अल-कलम 68:4)
कुरआन ने पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को "मजनून (दीवाना)" नहीं कहा, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए आदर्श (Uswah Hasanah) कहा है।
(सूरह अल-अहज़ाब 33:21)
उनका दीवानापन — दया और रहमत
कुरआन में अल्लाह (ईश्वर) ने फरमाया,
“हमने तुम्हें सारे संसारों के लिए रहमत (दयालुता) बनाकर भेजा है।”
(सूरह अल-अंबिया 21:107)
जब ताइफ़ में लोगों ने पत्थर मार-मार कर पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को घायल कर दिया,
उनके जूतों में खून भर गया, इस तरह के क्रूर व्यवहार को प्राप्त करने के बाद मक्का लौटने का फैसला किया। रास्ते में, जब वह क़र्न अल-थैलिब पहुंचे, अल्लाह ने पहाड़ों के फ़रिश्ते के साथ फ़रिश्ता गेब्रियल (जिब्राइल) को भेजा, जिन्होंने उनके उत्पीड़कों को नष्ट करने की उनकी अनुमति मांगी, फ़रिश्ता आए और बोले,
'हे मुहम्मद, जैसा आप चाहते हैं वैसा बोलें। अगर आपकी इच्छा है तो मैं उन्हें दो पहाड़ों के नीचे कुचल दूं।
लेकिन पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा,
“नहीं, मैं उम्मीद करता हूँ कि उनकी अगली पीढ़ी अल्लाह को पहचानेगी।”
(सहीह बुख़ारी)
यह है असली दीवानापन, दया का, बदले में क्षमा का।
उनका दीवानापन — सच्चाई और ईमानदारी
उनके दुश्मन भी उन्हें “अस-सादिक” (सच्चे) और “अल-अमीन” (भरोसेमंद) कहते थे।
मक्का की फतह (विजय) के दिन, जिन लोगों ने उन्हें निकाला था, जो उनके खिलाफ़ साजिश करते थे, आज वो सब उनके सामने सिर झुकाए खड़े थे।
अगर वो चाहते तो सबको सज़ा दे सकते थे, लेकिन उन्होंने कहा,
“आज मैं वही कहता हूँ जो यूसुफ़ (अ.) ने अपने भाइयों से कहा था, आज तुम पर कोई दोष नहीं, अल्लाह तुम्हें माफ़ करे।”
(सूरह यूसुफ़ 12:92)
यही है पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की दीवानियत, माफ़ करने का पागलपन।
सत्य के लिए उनका दीवानापन
जब कुरैश के लोग बोले,
“अगर तुम हमारे देवताओं की बुराई बंद कर दो, तो हम तुम्हें धन, पद और शक्ति देंगे।”
उन्होंने कहा,
“अगर तुम मेरे दाएँ हाथ में सूरज और बाएँ हाथ में चाँद रख दो, फिर भी मैं अल्लाह का संदेश पहुँचाना नहीं छोड़ूँगा।”
(सीरत इब्न हिशाम)
यह है सत्य के लिए दीवानापन, जब पूरी दुनिया विरोध में हो, फिर भी न डिगना।
उनकी दीवानियत — विनम्रता में
एक बार किसी ने उनसे पूछा, “क्या आप राजा हैं?” उन्होंने मुस्कुराकर कहा,
“नहीं, मैं तो उस सेवक का पुत्र हूँ, जो सूखी रोटी के साथ बैठकर खाता है।”
(इब्न माजा)
वो खुद अपने कपड़े सीते, जूते बनाते, और बकरियों का दूध निकालते। उनके अंदर कोई घमंड नहीं था, सिर्फ सच्चाई और विनम्रता।
उनका दीवानापन — माफी और करुणा में
एक बद्दू (देहाती) ने तलवार खींची और कहा, “अब तुम्हें कौन बचाएगा?”
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने शांत होकर कहा, “अल्लाह (ईश्वर)।”
यह सुनकर उस व्यक्ति का हाथ काँप गया, और तलवार गिर पड़ी। उन्होंने उसे माफ़ कर दिया।
(सहीह बुखारी)
उन्होंने कहा,
“सबसे अच्छा इंसान वह है, जो दूसरों को लाभ पहुँचाए।”
(दरकुतनी, हसन हदीस)
उनकी दीवानियत — उम्मत के लिए प्रेम में
रात के समय वो अल्लाह (ईश्वर) से रो-रोकर दुआ करते, “हे अल्लाह (ईश्वर)! मेरी उम्मत को माफ़ कर दे।”
फ़रिश्ते ने पूछा, “आप इतना क्यों रोते हैं?” तो उन्होंने कहा, “मुझे अपनी उम्मत की फिक्र है।”
(सहीह मुस्लिम)
कौन ऐसा है जो अपने लोगों के लिए आँसू बहाए? यह दीवानापन नहीं तो और क्या है,
प्यार का, रहमत का, करुणा का दीवानापन।
उनकी दीवानियत — मानवता के लिए प्रेम में
उन्होंने कहा,
“तुममें से कोई सच्चा मोमिन नहीं हो सकता जब तक वह अपने भाई के लिए वही पसंद न करे जो अपने लिए करता है।”
(सहीह बुखारी और मुस्लिम)
उन्होंने जानवरों, पेड़ों, और पानी तक के हक़ की शिक्षा दी। कहा,
“एक औरत को सिर्फ इसलिए जन्नत मिली, क्योंकि उसने प्यासे कुत्ते को पानी पिलाया।”
“और एक औरत को नरक मिला, क्योंकि उसने बिल्ली को भूखा मारा।”
(सहीह बुखारी)
यही है इंसानियत की असली दीवानियत।
अंत : यह दीवानापन दुनिया बदल गया
उनकी इस “दीवानियत” ने दुनिया की सोच बदल दी।
जिन्होंने उन्हें पत्थर मारे, वही बाद में उनके साथी बने।
जिन्होंने उनका विरोध किया, वो बाद में उनके संदेश के वाहक बने।
उनका यह प्रेम, यह रहमत, आज भी दुनिया के हर कोने में इंसानों के दिलों को छू रहा है।
आज हमारे लिए संदेश
आज भी कुछ लोग इस्लाम और पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के बारे में गलत बातें फैलाते हैं। वे कहते हैं कि “इस्लाम सख्त धर्म है।” लेकिन अगर कोई ईमानदारी से पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का जीवन पढ़े, तो समझ जाएगा कि इस्लाम असल में शांति, प्रेम और इंसानियत का धर्म है।
हमें भी उसी दीवानियत से, प्रेम, संयम और दया से, इस सच्चे संदेश को लोगों तक पहुँचाना चाहिए।
कुरआन की खूबसूरत याद दिलाने वाली आयतें
“निश्चय ही तू महान चरित्र का स्वामी है।”
(सूरह अल-कलम 68:4)
“और हमने तुम्हें सारे संसारों के लिए रहमत बनाकर भेजा।”
(सूरह अल-अंबिया 21:107)
सच्चा दीवाना कौन है?
लोगों ने उन्हें “मजनून” कहा, लेकिन वही “दीवाना” आज दुनिया के अरबों दिलों में बसता है।
उन्होंने जो सिखाया, वो आज भी जिंदा है, क्योंकि यह सिर्फ़ धर्म नहीं, इंसानियत का सबक़ है।
सच्चा दीवाना वो नहीं जो अपनी दुनिया के लिए पागल हो, बल्कि वो है जो अल्लाह (ईश्वर) के लिए, सच्चाई के लिए, इंसानियत के लिए दीवाना हो।
और ऐसा दीवाना सिर्फ एक था, मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम).
“एक दीवाने की दीवानियत।”
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