क्या कुरान में लिखा है कि पृथ्वी चपटी है?
आज के सोशल मीडिया युग में, कुछ लोग जानबूझकर इस्लाम के बारे में ग़लतफ़हमियाँ फैलाते हैं। एक पुराना भ्रांति है, कुरान कहता है कि पृथ्वी चपटी है। अर्थात वो बताते है कि,“कुरान में लिखा है कि पृथ्वी चपटी है।”
यह वाक्य सुनकर न केवल गैर-मुस्लिम, बल्कि कुछ युवा मुसलमान भी भ्रमित हो जाते हैं। लेकिन सच्चाई क्या है? क्या कुरान सचमुच ऐसा कहता है? आइए कुरान, विज्ञान और इस्लामी विद्वानों की टिप्पणियों से सच्चाई को समझें।
कुरान ज्ञान का स्रोत है
सबसे पहले, हमें यह याद रखना चाहिए कुरान विज्ञान की कोई किताब नहीं है, बल्कि यह ज्ञान की प्रेरणा देने वाली किताब है। यह मनुष्य को सोचना, निरीक्षण करना और अध्ययन करना सिखाती है।
“तुम्हें धरती और आकाश में मौजूद संकेतों को ध्यान से देखना चाहिए।”
(कुरान 3:191)
अर्थात, अल्लाह (ईश्वर) लोगों को सोचने, जाँच-पड़ताल करने के लिए कहता है - आँख मूँदकर राय बनाने के लिए नहीं।
यह आरोप कहाँ से आया?
कुछ इस्लाम-विरोधी कुरान के कुछ अरबी शब्दों की गलत व्याख्या करते हैं। उदाहरण के लिए, वे कहते हैं कि कुरान में "फैलाओ" लिखा है और इसलिए यह चपटा है। वे विशेष रूप से निम्नलिखित आयतों की ओर इशारा करते हैं:
"और हमने धरती को फैलाया।"
(सूरह 51:48 - "वल अरदा फ़राश्नाहा")
"और हमने धरती को अंडे के समान बनाया।"
(सूरह 79:30 — “वल अरदा बादा धलिका दहाहा”)
लेकिन एक बार जब आप इन शब्दों का सही अर्थ समझ लेते हैं, तो सब कुछ स्पष्ट हो जाता है।
“फ़रश्नाहा” (فَرَشْنَٰهَا) — का अर्थ है “फैलाना”, लेकिन कैसे?
“फ़रश्नाहा” अरबी शब्द “फ़राश” से आया है। इसका अर्थ है किसी चीज़ को आरामदायक, रहने लायक, मुलायम बनाना। अर्थात “अल्लाह (ईश्वर) ने धरती को इस तरह फैलाया है कि इंसान उस पर रह सके, चल सके और खेती कर सके।”
यह पृथ्वी को रहने योग्य बनाने की बात करता है, न कि पृथ्वी के आकार की।
प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान तफ़सीर अल-तबारी और तफ़सीर इब्न कसीर दोनों ने इसका अर्थ स्पष्ट किया है, उनके अनुसार, इस आयत का उद्देश्य "पृथ्वी को मनुष्यों के रहने योग्य बनाना" है, न कि किसी चपटी आकृति का वर्णन करना।
"दहाहा" (دَحَىٰهَا) — गलत व्याख्या!
कुरान सूरह 79:30 में कहता है:
"और हमने पृथ्वी को 'दहाहा' बनाया।"
(वाल अर्दा बादा ढालिका दहाहा)
कुछ लोग "दहाहा" का अनुवाद "फैला हुआ" के रूप में करते हैं, और इसलिए वे कहते हैं कि पृथ्वी चपटी है। लेकिन अरबी में, "दहाहा" का वास्तविक अर्थ है - 'अंडे जैसा बना हुआ' या 'अंडे के आकार का'। यह आश्चर्यजनक है क्योंकि कुरान का यह संदर्भ पृथ्वी के चपटे गोलाकार आकार का उल्लेख करता है।
'दहाहा' शब्द 'दहियाह' से आया है - जो शुतुरमुर्ग के अंडे के आकार से संबंधित है।
(संदर्भ: अरबी लेक्सिकॉन - लिसान अल-अरब, खंड 14, पृष्ठ 147)
और शुतुरमुर्ग का अंडा पूरी तरह गोल नहीं होता, बल्कि थोड़ा चपटा होता है - पृथ्वी के आकार जैसा (भूमध्य रेखा पर थोड़ा उभरा हुआ)। यह संदर्भ आधुनिक विज्ञान के अनुरूप है, उसके विरुद्ध नहीं!
कुरान में पृथ्वी की गतियों के संदर्भ
कुछ आयतों में पृथ्वी की गतियों का भी उल्लेख है। उदाहरण:
“वह वही है जो रात और दिन को बारी-बारी से बदलता है।” (कुरान 39:5)
यह आयत पृथ्वी के घूमने की ओर इशारा करती है। अर्थात, कुरान यह नहीं कहता कि पृथ्वी स्थिर है।
कुरान का संतुलित दृष्टिकोण
इस्लाम विज्ञान और धर्म का विरोध नहीं करता। इसके विपरीत, कुरान लोगों को यह सोचने के लिए प्रोत्साहित करता है:
"क्या वे पृथ्वी और आकाश में जो कुछ है, उस पर विचार नहीं करते?"
(कुरान 88:17-20)
कुछ अनुवादों में "पृथ्वी को फैलाना" लिखा है, लेकिन "फैलाना" का अर्थ है मनुष्यों के रहने योग्य बनाना, जैसे पहाड़, नदियाँ, समुद्र, कृषि के लिए मिट्टी, आदि।
विद्वानों की सहमति
प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान इमाम अल-कुरतुबी, फखरुद्दीन अल-रज़ी और इब्न कथिर अपनी तफ़सीर में स्पष्ट रूप से कहते हैं कि,
"कुरान पृथ्वी के आकार का नहीं, बल्कि मनुष्यों के लिए उसकी उपयोगिता का वर्णन करता है।" वे लिखते हैं:
“अल्लाह ने धरती को फैलाया, यानी उसे इंसानों के चलने और रहने लायक बनाया।”
(तफ़सीर अल-क़ुर्तुबी, खंड 17, पृष्ठ 84)
इस्लाम और विज्ञान का सामंजस्य
आज हम जानते हैं कि पृथ्वी गोल है और अपनी धुरी पर घूमती है। यह विज्ञान इस्लाम की किसी भी शिक्षा का खंडन नहीं करता।
कुरान में कहीं भी यह अक्षरशः नहीं लिखा है कि “पृथ्वी चपटी है।” यह ग़लतफ़हमी ग़लत अनुवाद और जानबूझकर फैलाई गई अफ़वाहों के कारण पैदा हुई है।
पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल.) और ज्ञान का दृष्टिकोण
पैगम्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा:
“ज्ञान प्राप्त करना हर मुसलमान का कर्तव्य है।”
(हदीस: इब्न माजा 224)
इसीलिए मुसलमानों ने विज्ञान, गणित और खगोल विज्ञान के क्षेत्र में महान उपलब्धियाँ हासिल कीं। उदाहरण के लिए:
अल-बिरूनी (जिन्होंने पृथ्वी की परिधि मापी)
इब्न हेथम (प्रकाशिकी के जनक)
अल-ख़्वारिज़्मी (बीजगणित के खोजकर्ता)
ये सभी लोग क़ुरान द्वारा दिए गए विचार और अवलोकन के संदेश से प्रेरित थे।
ग़लतफ़हमी का मूल कारण
कुछ लोग जानबूझकर इस्लाम के बारे में ग़लत जानकारी फैलाते हैं ताकि लोग इस्लाम से दूर रहें। वे जानते हैं कि बहुत से लोग क़ुरान का सही अर्थ समझने के बाद इस्लाम की सच्चाई की ओर मुड़ते हैं। इसलिए वे कुछ शब्द उठाकर उसका आंशिक अर्थ बताते हैं।
जो लोग इसकी सच्चाई को जानते है उनका कर्तव्य है, “ज्ञान और धैर्य के साथ सच्चाई क्या है वह लोगोंको बताएं।” और लोगोंको भी चाहिए के वह इस तरह की बातोंपर विश्वास करने से पहले इसकी जाँच परख करले। बहुत सारे कुरान के अनुवाद हिंदी भाषा में भी मौजूद है। आप उन्हें पढ़कर खुद इस की सच्चाई को जाने सुनीसुनाई बातोंपर विश्वास न करे।
इस्लामी दृष्टिकोण — शांति, सत्य और ज्ञान
क़ुरान कहता है:
“और कहो, हे मेरे रब, मुझे ज्ञान में बढ़ा।”
(क़ुरान 20:114)
अर्थात, इस्लाम हमेशा ज्ञान बढ़ाने की सलाह देता है, अंधविश्वास फैलाने की नहीं।
निष्कर्ष
तो संक्षेप में — कुरान कहीं भी यह नहीं कहता कि पृथ्वी चपटी है। इसके विपरीत, यह पृथ्वी को गोलाकार और गतिशील बताता है।
गलतफहमियाँ केवल गलत अनुवाद या विरोधियों द्वारा जानबूझकर तोड़-मरोड़ कर पेश करने के कारण उत्पन्न हुई हैं। इस्लाम का संदेश आज भी वही है —"ज्ञान प्राप्त करो, चिंतन करो और सत्य को स्वीकार करो।"
"धन्य हैं वे लोग जो ज्ञान के साथ सत्य को जानते हैं।"
(कुरान 39:9)
आपकी समझ को गहरा करने के लिए सुझाई गई पुस्तकें
यहाँ कुछ प्रामाणिक और प्रेरक पुस्तकें दी गई हैं जिन्हें आप मुफ़्त में पढ़ सकते हैं (पीडीएफ़ प्रारूप में):
पैगम्बर मुहम्मद स. और भारतीय धर्मग्रंथ डाऊनलोड pdf
ईश्दूत की धारणा विभिन्न धर्मोमे डाऊनलोड pdf
जगत-गुरु डाऊनलोड pdf
प्रत्येक पुस्तक इस्लाम और पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) की एक नई झलक प्रदान करती है।
संदर्भ
कुरान 79:30 — "वल अरदा बादा धलिका दहाहा"
कुरान 51:48 — "वल अरदा फ़राश्नाहा"
कुरान 3:191, 88:17–20, 20:114, 39:5, 39:9
तफ़सीर इब्न कसीर, खंड 1 8
तफ़सीर अल-कुर्तुबी, वॉल्यूम। 17, पृ. 84
लिसान अल-अरब, वॉल्यूम। 14, पृ. 147
सुनन इब्न माजाह, हदीस 224
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