अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस 2025 | गरीबी उन्मूलन का इस्लामी तरीका
हर साल 17 अक्टूबर को "अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस" मनाया जाता है। इस लेख में हम आपको गरीबी उन्मूलन का इस्लामी मार्ग (Islamic Way for Eradication of Poverty) बताते हैं। आम तौरपर इस दिन दुनिया भर में गरीबों, भुखमरी और अन्याय की समस्याओं पर चर्चा होती है। संयुक्त राष्ट्र इस दिन सभी देशों से अपील करता है, “सभी को सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार है।”
इस्लाम इस विचार से पूरी तरह सहमत है। लेकिन इस्लाम सिर्फ़ बातें नहीं करता, बल्कि गरीबी को ख़त्म करने का एक व्यावहारिक तरीका भी बताता है। क़ुरान और पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की शिक्षाओं में गरीबों के प्रति इतनी गहरी संवेदनशीलता है कि यह आज भी दुनिया के लिए एक समाधान हो सकती है।
इस्लाम में धन का अर्थ
इस्लाम कहता है कि धन सिर्फ़ हमारा नहीं है। यह अल्लाह की अमानत (अमानत) है। हम सिर्फ़ इसके प्रबंधक हैं। क़ुरान कहता है,
“और जो कुछ अल्लाह ने तुम्हें दिया है, उसमें से ख़र्च करो, ताकि वह चंद लोगों के हाथ में न रहे।”
(सूरह अल-हश्र 59:7)
अर्थात्, धन समाज में किसी एक समूह के लिए केंद्रित नहीं होना चाहिए। इसे सभी के बीच प्रसारित किया जाना चाहिए, ताकि सभी को जीवन का अधिकार प्राप्त हो।
ज़कात - आर्थिक समानता का आधार
इस्लाम में "ज़कात" की एक व्यवस्था है। यह ईश्वरीय आदेश है कि अपनी संपत्ति का 2.5% गरीबों को दिया जाए। कुरान कहता है,
"नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो।"
सूरह अल-बक़रा 2:43)
पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा -
"जो अपने पड़ोसी को भूखा सोते हुए देखे जबकि खुद पेट भर खाए, वह सच्चा मोमिन नहीं है।"
(सहीह बुखारी, हदीस 6016)
ज़कात न केवल गरीबों की मदद करती है, बल्कि समाज में असमानता और ईर्ष्या को भी कम करती है। यह इस्लामी तरीका "सामाजिक न्याय" का निर्माण करता है।
सदक़ा — स्वैच्छिक दान
ज़कात अनिवार्य है, लेकिन सदक़ा स्वैच्छिक दान है। इस्लाम कहता है,
“दान से धन कम नहीं होता, बल्कि बरकत बढ़ती है।”
(सहीह मुस्लिम, हदीस 2588)
सदक़ा सिर्फ़ पैसे के बारे में नहीं है, किसी को खाना, पानी, मुस्कान देना, रास्ता दिखाना, यहाँ तक कि किसी जानवर को खाना खिलाना भी सदक़ा है।
यह शिक्षा हमें दिखाती है कि इस्लाम में दान सिर्फ़ एक आर्थिक लेन-देन नहीं है, बल्कि यह एक मानवीय कार्य है।
समाज में ज़िम्मेदारी
इस्लाम कहता है कि ग़रीबों और ज़रूरतमंदों की देखभाल करना अमीरों की ज़िम्मेदारी है। क़ुरान कहता है,
“तुम जो भी दान में ख़र्च करते हो, वह अल्लाह की राह में है। अल्लाह तुम्हें उसका सवाब बढ़ा देगा।”
(सूरह अल-बक़रा 2:272)
इसका अर्थ है कि समाज में कोई भी भूखा न रहे, कोई भी बिना कपड़ों के न रहे, कोई भी बिना दवा के न रहे। प्रत्येक व्यक्ति को अपना धन दूसरों के साथ बाँटना चाहिए।
इस्लाम में आर्थिक व्यवस्था का उद्देश्य
अर्थव्यवस्था के प्रति इस्लाम का दृष्टिकोण बहुत अलग है। यह न केवल उत्पादन बढ़ाने पर, बल्कि न्यायसंगत वितरण पर भी ज़ोर देता है।
यदि प्रत्येक व्यक्ति अपनी ज़िम्मेदारी समझे, ज़कात दे, दान करे और ब्याज (रिबा) से बचे, तो गरीबी स्वाभाविक रूप से समाप्त हो जाएगी। कुरान कहता है,
"अल्लाह ब्याज को नष्ट करता है और दान को बढ़ाता है।"
(सूरह अल-बक़रा 2:276)
अर्थात, ब्याज का लेन-देन समाज में अन्याय पैदा करता है, लेकिन दान समाज में प्रेम और समानता पैदा करता है।
भूख मिटाने का इस्लामी दृष्टिकोण
पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा,
"जो पेट भर खाए और अपने पड़ोसी को भूखा छोड़ दे, वह मेरा अनुयायी नहीं है।"
(मुसनद अहमद, हदीस 11292)
यह हदीस कहती है कि सच्ची इबादत सिर्फ़ नमाज़ या रोज़ा रखना नहीं है, बल्कि दूसरों की भूख का भी ध्यान रखना है।
इस्लाम कहता है कि खाना देना सिर्फ़ रहमत नहीं, बल्कि ज़िम्मेदारी है। अगर हर घर हर हफ़्ते ग़रीबों के लिए एक वक़्त का खाना रखे, तो कोई भी समाज भूखा नहीं रहेगा।
काम और आत्मनिर्भरता
इस्लाम सिर्फ़ दान पर ही ज़ोर नहीं देता, बल्कि सभी को आत्मनिर्भर बनने के लिए भी प्रोत्साहित करता है। पैगंबर मुहम्मद ﷺ ने फ़रमाया,
"जो काम करके अपनी रोज़ी-रोटी कमाता है, वह अल्लाह का प्यारा है।"
(मुसनद अहमद, हदीस 17341)
उन्होंने कहा कि काम करना भीख माँगने से ज़्यादा इज़्ज़तदार है। इस्लाम में कोई भी काम कम नहीं है, खेती, दस्तकारी, व्यापार सभी कामों में सम्मान दिया जाता है।
समाज में महिलाओं और ग़रीबों के अधिकार
इस्लाम ने महिलाओं को संपत्ति और विरासत का अधिकार भी दिया है। उस समय तक, कई समाजों में महिलाओं को संपत्ति से वंचित रखा जाता था।
इससे धन केवल पुरुषों के बजाय समाज के अन्य वर्गों तक भी फैल गया। यही इस्लाम का संतुलित आर्थिक दृष्टिकोण है।
इस्लाम का उद्देश्य - न्याय और दया
इस्लाम का मूल उद्देश्य न्याय, दया और समानता है। कुरान कहता है,
"अल्लाह न्याय और दान का आदेश देता है।"
(सूरह अन-नहल 16:90)
यदि ये दोनों सिद्धांत समाज में लागू हो जाएँ, तो गरीबी, भुखमरी, अन्याय - सब अपने आप समाप्त हो जाएँगे।
निष्कर्ष
आज, दुनिया में अरबों लोग गरीबी में जी रहे हैं। कहीं भोजन बर्बाद होता है, तो कहीं लोग भूख से मरते हैं। इस्लाम कहता है,
"भोजन के हर निवाले का सम्मान करो, क्योंकि यह अल्लाह की कृपा है।"
यदि हम सभी ज़कात दें, सदक़ा दें, भोजन बर्बाद न करें, और अपने पड़ोसियों का ध्यान रखें, तो हम वास्तव में गरीबी को समाप्त कर सकते हैं।
इस्लाम का यह संदेश केवल मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए है। क्योंकि क़ुरान कहता है,
“हमने तुम्हें सारे जहाँ के लिए रहमत बनाकर भेजा है।”
(सूरह अल-अंबिया 21:107)
तो,
17 अक्टूबर के इस दिन, आइए हम यह संकल्प लें,
“भोजन सिर्फ़ भोजन नहीं है, यह मानवता की ज़िम्मेदारी है।”
आपकी समझ को गहरा करने के लिए सुझाई गई पुस्तकें
यहाँ कुछ प्रामाणिक और प्रेरक पुस्तकें दी गई हैं जिन्हें आप मुफ़्त में पढ़ सकते हैं (पीडीएफ़ प्रारूप में):
पैगम्बर मुहम्मद स. और भारतीय धर्मग्रंथ डाऊनलोड pdf
ईश्दूत की धारणा विभिन्न धर्मोमे डाऊनलोड pdf
जगत-गुरु डाऊनलोड pdf
प्रत्येक पुस्तक इस्लाम और पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) की एक नई झलक प्रदान करती है।
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